Categories
Agriculture Ancient Technology environment India lift irrigation Narendra Modi social issues Tribe Uncategorized Water Conservation,

क्या बिना बिजली के फसलो की सिंचाई संभव है ?

 

यह एक आम धारणा बन गयी है की आदिवासी समाज पिछड़ा हुआ शोषित समाज है और इस समाज को मुख्य धारा में लाने की आवश्यकता है . देश के नीति निर्माता हमारे राजनेता भी कई दशको से यही राग अलापते आ रहें है, इसलिए शहरों में रहने वाली आबादी को भी यही लगता है की आदिवासी समाज को उन्नत करने के लिए उन्हें शिक्षित और विलायती तौर तरीके सिखाने की आवश्यकता है .

आदिवासी समाज को शायद ही किसी उन्नयन की आवश्यकता हो . इस बात का प्रमाण मध्यप्रदेश के धार जिले की डही तहसील के पडियाल और पीथनपुर  गाँव में देखने को मिलता है . यहाँ आदिवासीयों द्वारा विकसित की गयी सिंचाई तकनीक गुरत्वाकर्षण के नियम को धता बताती नज़र आती है . यहां पानी को आवश्यकता अनुसार मोड़ कर पहाड़ी पर स्थित अपने खेतों में बिना किसी आधुनिक उपकरण के पानी ले जाते है . इस तकनीक को यहां “पाट” प्रणाली कहा जाता है और हम इसे उद्ध्वंत सिंचाई या लिफ्ट इरीगेशन के नाम से जानते है .

हर किसी के मन में यह प्रश्न आयेगा की ऐसा करना तो लगभग ना मुमकिन है, बिना किसी उपकरण की मदद के,  गुरत्वाकर्षण के नियम के विरूद्ध पानी को कई मीटर ऊपर पहाड़ो को कैसे ले जाया जा सकता है ? पाट सिंचाई प्रणाली में नीचे की और बहाने वाले किसी नाले या नदी का चयन कर उस समभूमि की तलाश की जाती  है जो खेत की उंचाई के समानांतर हो . इस स्थान पर मिट्टी और पत्थरों की मदद से एक बाँध बनाया जाता है. पानी को रोकने की व्यवस्था कर लेने के बाद नालियों के माध्यम से किनारे किनारे खेत तक पानी ले जाया जाता है . यहां नालियों के निर्माण में आदिवासियों की अपकेंद्री और अभिकेन्द्री बल की नैसर्गिक समझ पानी को खेतो तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है . इन नालियों के निर्माण में जहां जहां बड़े गढ्डे आते है वहां पेड़ो के खोखले तनो को पाइप की तरह इस्तेमाल करके  पानी के लिए रास्ता बनाया जाता है .

इन नालियों को विकेन्द्रित कर छोटी नालियों के माध्यम के अलग अलग खेतों में पानी पहुँचाया जाता है . आपको यह जान कर हैरानी होगी की इस प्रणाली के माध्यम से 30 – 40 हार्सपाँवर की क्षमता के समकक्ष सिंचाई की जा सकती है, अर्थात एक 5 हार्सपाँवर की विद्युत मोटर 1 घंटे में 40,000 लीटर पानी उत्सर्जित करती है, तो इस प्रणाली से लगभग एक घंटे में 2,40,000 लीटर पानी एक घंटे में प्राप्त किया जा सकता है . सामन्यात: 1 हेक्टेयर में गेंहू, मक्का आदि फसलो को पूर्ण रूप से तैयार करने में 12 लाख लीटर पानी की आवश्यकता होती है . आप कल्पना कर सकते है की कृषि को सरल बनाने की यह कितनी युक्तिसंगत प्रणाली है .

अब आप स्वयं समझ सखते है किसे सिखाने और किसे सिखाने की आवश्यकता है ? कौन आधुनिक समाज में जी रहा है ? कौन प्रकृति को नुकसान पहुंचाये बिना विकास की और अग्रसर है ? पर दुःख इस बात का है की सिंचाई के वर्तमान साधनों ने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के साथ साथ “पाट” प्रणाली को लुप्त होने की कगार पर पहुंचा दिया है . काश हमारे राजनेता प्राचीन प्रणालियों के माध्यम के सिंचाई की योजनाये विकसित करते तो शासन के पैसे का अपव्यय तो कम होता ही साथ ही साथ एक अत्यंत आधुनिक प्रणाली भी फलफूल रही होती .

By Tapan Deshmukh

Freelance journo,Blogger, Political Aide, Social Activist, RTI Activist, Fossil Explorer

Leave a comment