क्या आपके मन में यह ख्याल नहीं आता कि, सिंध ना हो तो हिन्द की कल्पना कैसे की जा सकती है ? अगर हिंदुस्तान की आज़ादी से पहले का इतिहास देखे तो पाकिस्तान में हिन्दू, इंडो–ग्रीक, मुसलमान, तुर्कों- मंगोल, अफगान और सिख आबादी आपस में मिलजुलकर ख़ुशी से गुज़र बसर कर रही थी. यह बात काफी पुरानी नहीं है, कुछ 80 साल पुराने इतिहास की हम बात कर रहे है. फिर ऐसा क्या हो गया की एक ही मिट्टी की उपज भारत और पाकिस्तान की आवाम एक दुसरे को घृणा से देखती है ? यह तो हम सब जानते है की पंडित जवाहरलाल और मोहम्मद अली जिन्ना दोनों को ही प्रधानमन्त्री बनने का भूत सवार था और इस कारण ही पाकिस्तान का जन्म हुआ. जिन्ना की मृत्यु 11 सितम्बर 1948 हुई और नेहरु की 27 मई 1964 को. इनकी मृत्यु के बाद तो एक जन आन्दोलन खड़ा हो सकता था. यह बात मुझे समझ नहीं आती की भारत की जनता आज़ादी के नाम पर देश के टुकडे करने पर कैसे राज़ी हो गयी ? नेताओं का स्वार्थ तो समझ आता है पर, जनता का क्या स्वार्थ था? क्यों आज तक दोनों देशो में भारत पाकिस्तान के मध्य की रेडक्लिफ लाइन मिटाने को लेकर कोई जन आन्दोलन नहीं हुआ. आज़ादी के समय तो यह ज़ख्म ताज़ा भी था, तो यह भी निश्चित है की दोनों देशो की जनता के मन में इसकी पीड़ा तो ज़रूर उठती होगी. फिर आज वह पीड़ा कहाँ गुम हो गयी? चाहे कोई कुछ भी कहे पाकिस्तान और बांग्लादेश है तो भारत का अभिन्न अंग. क्या नक़्शे पर एक लकीर खींच देने से आवाम बदल जाती है ? क्या आपका मन नहीं करता मानव इतिहास की दुर्लभ धरोहर हड़प्पा और मोहन जोदड़ो के साक्षात्कार करने का ? क्या हम सियासी चालों में इतना उलझ गए है कि, हमें हमारा देश ही अलग-अलग मुल्क दिखाई देता है?
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