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“Road Rage” Who is Responsible ?

Image Source: newsgram.com
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Riding bike or driving car on road is onerous task in Indore. Failure of signals, poor law enforcement, illegal encroachment and bad traffic management is contributing in making situation worst.  If we observe effect of mismanaged traffic on our subconscious, we will find that in our daily life,Either we are culprit or victim of ‘Road Rage’. Many of us are unaware of term Road Rage, this term was discovered in US during 1980’s when some news channel broadcasted news about it. This term simply means violent incidents caused by stress of driving.  It may be also defined as incident in which a passenger, angry motorist or someone impatient intentionally causes injury or kill another motorist, passenger, pedestrian.

Indore Police spent thousands of bucks in installing 192 RLVD cameras, i.e., Red Light Violation Detection system on 15 main squares of city including Bengali Square, Humkumchand Ghantaghar Square, Regal Square, Palasia Square, Geeta Bhawan Square, Mhow-Naka Square etc. With the help of this system police issued 22000 challans till 09 May 2015 for offences like red light violation, Triple Riding, Wrong Number Plate, Not Wearing Helmet etc.  Do you think it’s a cure or an alternate remedy for ‘Road Rage’?  I must say, no it’s not. Our traffic system is incompetent to encounter factors such as, honking horn restlessly,  flashing lights excessively, weaving in and out of traffic, cutting others path, speeding and aggressive acceleration, verbal abuse etc.

Image Source : hindu
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Here I want to share what motivated me to draft this article on this social evil. Few days ago I was waiting for signal to turn green in peak traffic hours at Bengali Square, Indore. Let me specify, if you want to go towards bypass crossing Bengali square, the duration of Red Light signal is 180 seconds and it turns green only for 20 seconds. It took 25 minutes to cross distance of only 120 meters, during jam I saw few decent people rushed out of their car and started quarreling with a guy who’s also waiting for signal to turn green. It’s a most simple and common example we all encounters at traffic signal.  One more thing here I would like to quote, when people are struggling to pass through the traffic jam, policeman on duty was nothing more than a mere spectator. In this modern society common man is dealing with numerous kinds of stress and after having a hard day when it returns home, it has to pass through serious traffic chaos leading into road rage sometimes.

Don’t you think it’s the fault of mismanaged traffic signal that abetted few guy’s to commit a crime. Abetment is a serious punishable offence under various sections of Indian Penal Code, so whom you will frame culprit for this misconduct. Traffic Police, Traffic Management or person involved in misconduct? I tried to find cases registered under road rage but I’m surprised to see that, in India we don’t have separate category for it. National crime record bureau depicts statistics of Road Accidents not road rage.

Police can implement automated smart traffic monitoring system with an authority to regulate traffic signals based on live feed collected by camera and traffic sensors. Government can develop android based and handheld devices can be given to traffic constables to regulate traffic according to live traffic load. Many foreign countries with high traffic index are using these practices to minimize road rage, so why can’t we.

How to Avoid Road Rage :

1. Always remember road is public property.

2. Keep yourself entertained in bad traffic.

3. Find an alternative route or diversions.

4. Don’t take it personal.

5. Control your anger and avoid eye contact with other motorist.

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डिस्पोज़ल मानव जाति को ही डिस्पोज़ ऑफ ना कर दे

मुझे जानने वाले बहुत से लोगों को यह पता ही होगा के मेरे घर के पास एक चाय की दुकान है।  वहां चाय के साथ-साथ आप गरमा – गरम  पोहा, जलेबी, समोसा , कचोरी और सब्जी पुरी की भी आनंद ले सकते है। बेरोज़गारी के इन 2 महिनो में शायद ही ऐसा कोई दिन बीता होगा, जब मैं वहां दिन में एक दो बार चाय पीने ना गया हूँ।  आज दोपहर, मैं  वहां पहुंचा तो मैने वहां काम करने वाले एक कर्मचारी को चाय लाने के लिए कहा, चाय का स्वाद तो वही था परन्तु एक विशेष विषयवस्तु की ओर मेरा ध्यानाकर्षित हुआ।  आज चाय डिस्पोज़ल ग्लास में परोसी गयी और जो लोग वहां भोजन कर रहे थे , वह भी डिस्पोज़ल थालियों में ही खाना खा रहे थे।  यह हम सब जानते है कि, वह उत्पाद जिनका उपयोग हम डिस्पोज़ल के नाम पर करते है वह कितने जैवनिम्निकृत होते है।  जैवनिम्निकृत अर्थात biodegradable, यानी स्वयं नष्ट हो जाने वाला।  Clean_India_logo_650

भारत के 200 प्रमुख शहरो में 18 करोड़ 18 लाख 77 हज़ार 585 (जनगणना 2011) नागरिक निवास करते है। केन्द्रिय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के द्वारा करवाये गये 59 शहरों (35  महानगर व 23 राज्यों की राजधानी 2004 – 2005) के  सर्वेक्षण अनुसार, इन शहरो मे प्रतिवर्ष 1 लाख मैट्रिक टन कचरा उत्पन्न होता है। इस रिपोर्ट के अनुसार जब इन्दौर शहर की आबादी 14 लाख 74 हज़ार 968 थी (जनगणना 2001) अर्थात 557 टन प्रतिवर्ष, तब कचरा उत्पादन की दर 0.38 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन थी, तो आप भारत की वर्तमान स्तिथि का अन्दाज़ा लगा सकते है।  कूड़े  के परिपेक्ष्य में जहां तक जैवनिम्निकरण कचरे की बात है वहां, तो स्तिथि कुछ नियन्त्रित प्रतीत होती है , परन्तु अगर हम प्लास्टिक व तथाकथित डिस्पोज़ल की बात करें तो स्थिति भयावह है । सरकार द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्यप्रदेश में प्रतिवर्ष 16 करोड़ 19 लाख 65 हज़ार 100 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हो रहा है।  प्रदेश में प्लास्टिक उत्पाद बनाने वाले  उद्योगो में से 69 पंजीकृत है और 34 यह कार्य अनाधिकृत रुप से कर रहें हैं।  आपको यह जान कर हैरानी होगी कि, शासन द्वारा अवैध रुप से संचालित इन उद्योगों पर कोइ कार्यवाही नही की गयी है।  खानापूर्ति के नाम पर मापदण्ड के विरुद्ध प्लास्टिक उत्त्पाद इस्तेमाल करने वालों पर कुछ शास्ति ज़रूर अधिरोपित की गई है।

पने यह गौर किया होगा कि पिछ्ले एक दशक से भारत देश में विभिन्न बिमारियों से पीड़ित रोगियों की संख्या में अचानक वृध्दि हुई है।  क्या आपके मन में यह प्रश्न उत्पन्न नही होता कि, ऐसा क्यूं ? शायद आपमें से बहुत कम जानते होंगे कि, कौन – कौन से प्लास्टिक उत्पादों के कारण किस – किस तरह के रोग़ होते है।

पॉलीविनियल क्लोराइड :  उपयोग : फ़ूड पैकेजिंग, प्लास्टिक रैप, सौंदर्य प्रसाधन, खिलौने इत्यादि।

रोग : कैंसर, जन्मजात विकृतियां, क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, अल्सर, चर्म रोग, बहरापन, अजीर्णता, लीवर विकृति।

फ्थलेट्स (डी ई एच पी) (डी आई एच पी): उपयोग : विनायल के कपड़े, इमल्शन पेंट, ब्लड बैग, कृत्रिम रक्त एवं श्वांस नलिकाएं, इत्यादि।

रोग :  अस्थमा, चिकित्सीय उपयोग के कूड़े को जलाने के बाद उत्पन्न होने वाले पारे से कैंसर, बांझपन, हार्मोन अस्थिरता, शुक्राणुओं की संख्या में कमी।

पॉलीकार्बोनेट के साथ बिसफिनॉल ए : उपयोग : पानी की बॉटल।

रोग : कैंसर, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, मोटापा, मधुमेह, अतिक्रियाशीलता इत्यादि।

पॉलीस्टरीन : उपयोग : मांस, मछली, दही, बेकरी उत्पादों को पैक करने में इस्तेमाल किये जाने वाले डिब्बे, डिस्पोज़ल थालियां और कप, खिलौने।

रोग : आँख, नाक और गले में जलन, चक्कर आने के साथ बेहोशी, लसीका का कैंसर।

प्लास्टिक के ऐसे अन्य 6 और प्रकार है, जो हमारे जीवन का हिस्सा गये है।  जैसे कोल्डड्रिंक की बॉटल, पानी के गिलास, प्लास्टिक बैग, रसोई के बर्तन, खाने को गर्म रखने वाली पैकेजिंग, डायपर, प्लाईवुड, गद्दे, तकिये, चादर, गलीचे, नॉन स्टिक बर्तन इत्यादि आपके जीवन को अस्वस्थ और आपको बहुत बीमार बनाने के लिए काफी है।

courtesy: Ms. Usha Athaley  रायगढ़ जिले के ग्राम तिलगा में पत्तल-दोना बनाती महिला
courtesy: Ms. Usha Athaley रायगढ़ जिले के ग्राम तिलगा में पत्तल-दोना बनाती महिला

मुझे याद आता है कि, आज से लगभग डेढ़ दशक पहले जब किसी के घर सामूहिक भोज का आयोजन होता था, तो आयोजनकर्ता अपनी क्षमता के अनुरूप धातु की थाली में या पलाश के पत्तो से बने पत्तल में भोजन करवाता था और भोजन ज़मीन पर बैठ कर किया जाता था।  वैज्ञानिक यह सिद्ध कर चुके है की बैठकर भोजन करना सर्वोत्तम है और पलाश के पत्तलो में परोसा गया भोजन केले के पत्ते के सामान ही गुणकारी है।  मुझे यह देखकर बड़ी हैरानी होती है कि , आदिवासी अंचलो में भी अब लैमिनेटेड कागज़ की थालियों में भोजन परोसा जाने लगा है।  पूर्व में अगर कोई आदिवासी सामूहिक भोज  देता था, तो उसके परिवार के सदस्य जंगलो में  कर पलाश और सागौन के पत्ते इकट्ठा कर पत्तल बनाते थे और अतिथियों इन पत्तलो में भोजन परोसा जाता था।  यकीन मानिए यह प्रथा कुछ वर्षो पहले तक जीवित थी।

अंग्रेज़ो  द्वारा करवाये गए सर्वेक्षण के अनुसार 1911 में  मध्य भारत के जबलपुर और मण्डला  में ” बारि ”  जाति की आबादी 1200 के लगभग थी।  ” बारि ” जाति के लोगों का पुश्तैनी व्यवसाय पत्तल बनाने का था।  इस जाति उल्लेख इस लिये आवश्यक था क्यूंकि बारि और कुम्हार वह जातियां है जो इस देश में कचरा प्रबंधन का कार्य सैंकड़ो वर्षो से कर रही है।यह इस देश का दुर्भाग्य है कि, वर्तमान में उल्लेखित जातियों की आर्थिक स्तिथि ठीक नहीं है।

रा विचार करें  मिट्टी के बर्तन टूट के पुनः  मिट्टी  बन जाते है और पत्तल कुछ समय बाद अपघटित हो कर उर्वरक,फल – सब्जियां कपड़े की थैलियों में घर ला सकते है और दूध-दही-घी -छांछ केटली में, किराणे के सामान और मांस-मछली पहले की तरह कागज़ में खरीदी जा सकती है।  क्या यह इतना दुष्कर कार्य है ? कहीं ऐसा ना हो की डिस्पोज़ल मानव जाति को ही डिस्पोज़ ऑफ ना कर दे !      Mitti Cool Products

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पुलिस को है प्रभावी कार्यप्रणाली की आवश्यकता

Dainik Bhaskar

                आज सुबह के अखबार मे इन्दौर के डी.आई.जी. सन्तोष कुमार सिंह का विरोधाभासी बयान प्रकाशित हुआ। अपने बयान मे वह कह रहे है कि,  ” हमने कभी रात 11 बजे मार्केट बन्द करवाने को नही कहा, यह किसी उत्साही अधिकारी की करतूत है ” ।  यह विचारणीय है कि, क्या यह मुमकिन है कि , इन्दौर संभाग के दूसरे सबसे बडे पुलिस अधिकारी इस जानकारी से अनभिज्ञ हो या यह भी हो सकता है कि, वह किसी आला अधिकारी को जनाक्रोश से बचाने क प्रयास कर रहे है। खैर मामला जो भी हो, पर भारत मे पुलिस की कार्यप्रणाली में भारी परिवर्तन की दरकार है।
                       इन्दौर सम्भाग की बात की जाए तो इन्दौर शहर मे आजकल पुलिस थोडी मुस्तैद दिख रही है और पुलिस की मुस्तैदी का आलम यह है कि, असामाजिक तत्वो ज्यादा पुलिस से वह लोग घबराये हुए है जो सामान्य जीवन जीते है।  अपने कार्यक्षेत्र मे कार्य करने के दौरान मैने ऐसे असंख्य मामले देखे है , जिसमे पुलिस ने फरियादी को ही डरा – धमकाकर थाने मे बिठा लिया हो।  अगर आप अपने किसी परिवारजन की गुम्शुद्गी की रिपोर्ट लिखाने थाने जाए तो यह मान कर चले की इसके लिए आपको किसी ना किसी राजनीतिक रसूख रखने वाले की आवश्यकता पड़ेगी ही।  निर्दोष लोगो को बिना किसी अनुसन्धान के आरोपी बना लेना हमारी पुलिस के लिए एक आम बात है।  अगर आप किसी आपराधिक मामले मे आरोपों की पुष्टि करने वाले महत्वपूर्ण ग़वाह है तो यह जान लिजिये की हमारे देश मे विदेशो कि तरह कोइ भी ” गवाह सुरक्षा कार्यक्रम ” संचालित नही किया जाता।  व्यापम घोटाले से समबंधित महत्वपूर्ण व्यक्तियो की संदिग्ध अवस्था मे मृत्यु इस तथ्य को स्वप्रमाणित करती है।
                अगर संभाग की बात की जाए तो स्तिथि इतनी गम्भीर है कि , आप कल्पना भी नही कर सकते। निमाडांचल का शायद ही ऐसा कोई गांव होगा जहां आपको अवैध शराब ना मिले , अगर आप पुलिस मे शिकायत करेंगे तो आपको उत्तर मिलेगा की यह हमारा काम नही है , और वास्तव मे है भी नही और अगर आप आबकारी मे शिकायत करेंगे तो आपको जवाब मिलेगा हम देख लेंगे आप चिन्ता मत करो या हमारे पास पर्याप्त बल नही है। ऐसे कितने ही नृशन्स हत्या के मामले है जो आज भी लम्बित है।  आपको यह जान कर हैरानी होगी कि, अगर किसी किसान का सिंचाई पम्प खेत से चोऱी हो जाता है तो पुलिस उसकी प्राथमिकी दर्ज नही करती।  प्रत्येक गांव मे आपको ऐसे असंख्य किसान मिल जाएंगे जिन्होने यह पीड़ा कभी ना कभी भोगी हो। ऐसे असंख्य बिन्दु है, जो बार बार यह कह रहे है कि , पुलिस की वर्तमान कार्यप्रणाली मे बहुत बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है।
                आप में से बहुत से लोगो को शायद यह पता हि होगा कि, गुजरात राज्य के सुरत मे पुलिस द्वारा Advance Face Recognition Technology का प्रयोग किया जा रहा है।  इस तकनीक की मदद से पुलिस नागरिकों को परेशान करे बिना ही संदिग्धों की पहचान कर रही है।  क्या हमारे देश में संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रभावी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ” यूनाइटेड नेशन फेडरल विटनेस प्रोटेक्शन प्रोग्राम ” की तरह कोई प्रभावी कार्यक्रम लागू नहीं किया जा सकता। क्या पुलिस आम लोगो से नम्रता पूर्वक संवाद नहीं कर सकती ?  क्या हमें कभी यह महसूस होगा की हमारी पुलिस हमारी सुरक्षा के लिए है ना कि किसी ब्रिटिश सरकार के लिए ?